"यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
भ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥" (भगवद्गीता ४.७)
व्याख्या: यह श्लोक भगवान कृष्ण द्वारा महाभारत के कुरुक्षेत्र युद्ध के क्षेत्र में योद्धा अर्जुन को कहा जाता है। यह श्लोक ब्रह्मा अवतार अवतरण की महत्वपूर्णता को बताता है जब दुनिया में नैतिकता में क्षीणता और अनैतिकता में वृद्धि होती है।
कृष्ण अर्जुन को आश्वासन देते हैं कि जब भी धर्म को धमकी होती है और जब दुनिया दुष्टता और अन्याय से भर जाती है, तब वह खुद को पृथ्वी पर प्रकट करेंगे। इस श्लोक में दिव्य हस्तक्षेप के चक्रव्यूह की महत्ता और सदैव अच्छा और बुरा के बीच चल रहे अद्वितीय युद्ध की व्यापकता को जोर दिया गया है।
भगवद्गीता संपूर्णतया भगवान कृष्ण और अर्जुन के बीच दार्शनिक और आध्यात्मिक संवाद है। यह जीवन, कर्तव्य और आत्मा के स्वभाव के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालती है। यह धर्मिक जीवन जीने, अपने कर्तव्यों को पूरा करने और आध्यात्मिक ज्ञान को प्राप्त करने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करती है।
यह श्लोक व्यक्तियों को याद दिलाता है कि नैतिक चुनौतियों और कठिन समयों के बीच भी दिव्य हस्तक्षेप उपलब्ध है, जो उन्हें मार्गदर्शन और सहायता करने के लिए है। इसका समर्थन किया जाता है कि नैतिकता की संरक्षा और सभी पहलुओं में नैतिक मूल्यों की पुरस्कार जारी रखना आवश्यक है।